फलित ज्योतिष में कुंडली या जन्म कुंडली का अत्यंत महत्व हैं, यह जातक के व्यक्तित्व, स्वभाव, शारीरिक संरचना, शिक्षण, कामकाज, विवाह, आरोग्य, संतान, इत्यादीया प्रायः सभी आयामों और महत्पूर्ण घटनाओं को दर्शाने वाला शास्त्रोक्त मानचित्र या लेखा जोखा हैं, जो समुचित जीवन का पूर्वानुमान देने की क्षमता रखता हैं। जन्म समय, तिथि, स्थान, राशि, नक्षत्र जैसे कुंडली के अन्य घटकों की तरह भाव, जिन्हें घर या स्थान कहा जाता है, वे फलित ज्योतिष के अति महत्वपूर्ण अंग हैं। जिस प्रकार मानव शरीर सर से शुरू होकर पैर के पंजों तक जाता है, कुंडली के भाव भी क्रमवार जातक के जीवन को प्रभावित करते है, उदाहरण के लिए, प्रथम भाव सिर या मस्तक, द्वितीय भाव चेहरा, तृतीय भाव भाई बहन, पराक्रम ,चौथा भाव माता, भवन, वाहन, को प्रभावित करते हैं, इसी प्रकार सभी भाव क्रमशः विभिन्न विषयों पर अपना प्रभाव दिखाते हैं। विभिन्न देशों, क्षेत्रों में विभिन्न पद्धतियों का अवलंब करने वाले ज्योतिषाचार्यों के अनुसार कुंडली के भावों की व्याख्यायें में भिन्न हो सकती है, किंतु सर्वमान्य मान्यताएं नहीं बदलती। इस लेख में हम इन भावों की विशेषताओं, महत्त्व, शुभाशुभ विवेचन आदि के बारे में संक्षिप्त में जानेंगे। भावों को कैसे पढ़ा जाता हैं, यह देखेंगे। कुंडली के सभी भाव एक दुसरे को प्रभावित करते हैं, भावों में बैठे ग्रहों की दृष्टी, उसमे स्थित ग्रह और राशि का शील, उनका बलाबल, उन ग्रहों का शुभत्व, उच्चांक, नीचांक, उन भावों के स्वामी की अन्य ग्रहों से मैत्री, अथवा शत्रुत्व इन सबका क्या प्रभाव पड़ता है, यह कुंडली केविस्तृत अध्ययन से पता चल सकता हैं।
इस भाव को लग्न भाव, प्रथम भाव या तनु भाव कहा जाता है। राशि चक्र की बारह राशियों में पहली राशि मेष का क्रमांक 1 है, तो राशि मीन का क्रमांक 12 है। कुंडली में भाव हमेशा स्थित और राशियां चालित होती है, इसलिए पूर्व में जिस राशि का उदय हो रहा हो, उसी राशि का क्रमांक प्रथम भाव में लिखा जाएगा, और उसे लग्न राशि मान लिया जाता हैं। उदाहरनार्थ, यदि प्रथम भाव में आप क्रमांक 9 देखते हैं तो लग्न धनु होगा। जातक के व्यक्तित्व, स्वाभाव, आयु, यश, सुख, मन सन्मान आदि इस भाव के कारकत्व हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के सिर और मस्तक को प्रभावित करता हैं।
इसे धन भाव या कुटुंब स्थान कहा जाता है, साथ ही इसे भी त्रिक स्थान माना गया हैं। यह भाव धन से संबंधित विषयों को दर्शाता हैं। कुंडली का दूसरा भाव, चेहरा, भोजन, धन-संपत्ति, परिवार, वाणी, प्रारंभिक शिक्षा, स्वर्ण आभूषण, हीरे जवाहरात आदि का कारक हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के बायीं आंख, नाक, कान, और गर्दन को प्रभावित करता हैं।
इसे सहज भाव, बंधू भाव या पराक्रम स्थान भी कहते हैं। तीसरा भाव कार्य करने के सामर्थ्य, इच्छा शक्ति और साहस का परिचायक हैं। जातक की रचनात्मकता, प्रतिभाएं, संवाद शैली, छोटे भाई बहन, आदि इस भाव के कारकत्व हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के भुजा, हाथ और कन्धों को प्रभावित करता हैं।
इसे मातृ भाव या माता का स्थान भी कहते हैं। कुंडली में चौथे भाव को प्रसन्नता या सुख का कारक माना जाता है। जातक के निजी परिवार, घर में छवि या रुतबा, माता और अन्य परिजनों के साथ परस्पर संबंध, वाहन सुख सुविधाएं, आदि इस भाव के कारकत्व हैं। विशेष रूप से भवन, वहां सुख आणि दर्शाता हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के छाती, स्तन और पेट को प्रभावित करता हैं।
इसे सुत भाव भी कहते हैं। कुंडली (Horoscope) का पंचम भाव उत्पत्ति का कारक माना जाता है। संतान योग, संतान सुख, आपके प्रेम संबंधों की व्याख्या भी पंचम भाव से ही की जाती है। यह कुंडली का त्रिकोण भाव होने से इसे अति विशेष महत्त्व प्राप्त हैं। विद्या, शिक्षा, हर्षोल्लास, बुद्धिमत्ता, संचित कर्म, वैदिक ज्ञान, ग्रहण क्षमता, अनेक गुप्त और ज्ञात विद्या आदि इस भाव के कारकत्व हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक की पीठ, पसलियों और नाभि को प्रभावित करता हैं।
इसे शत्रु, रिपु या रोग स्थान भी कहते हैं। कुंडली में छठा भाव रोग का कारक भी माना जाता है और यह आपकी सेहत के बारे में फलकथन करने के लिए मान्यता प्राप्त है। अन्य ग्रहों की इस भाव पर पड़ने वाली दृष्टियों से जातक के स्वास्थ्य के बारे में सटीक विवेचना की जा सकती हैं। कर्ज पाना, कर्ज को चुकाने की क्षमता, विरोधियों से लड़ने का बल और साहस, साथ ही आपके शत्रुओं पर आपकी विजय या हार, पाप, दुष्कर्त्य, भय, तिरस्कार आदि इस भाव के कारकत्व हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक की आँतों और गर्भाशय को प्रभावित करता हैं।
इस भाव को भार्या भाव या कलत्र स्थान भी कहते हैं। वैवाहिक सुख, जीवनसाथी का स्वाभाव, कोर्ट-कचहरी में यश अपयश, व्यक्ति के जीवन में निजी और कार्यक्षेत्र के बीच तालमेल, कामेच्छा आदि इस भाव के कारकत्व हैं। इस भाव से जातक की पत्नी के शील, स्वाभाव, स्वास्थ्य, रंगरूप, ससुराल पक्ष के बारे में जानकारी देता हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के मूत्राशय और कमर को प्रभावित करता हैं।
इस भाव को मृत्यु भाव या त्रिक स्थान भी कहते हैं। अष्टम भाव यानि कुंडली का आठवां घर मृत्यु का स्थान माना जाता है। इसलिये इस घर में ग्रहों का प्रभाव भी निकृष्ट ही माना जाता है। मृत्यु के साथ-साथ यह भाव यात्रा के योगों के बारे में भी बताता है। यह भाव विशेष रूप से दुर्घटनाएं और असाध्य रोगों का कारक हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के ह्रदयविकार, बीमारियां, व्याधियों और रोगों को प्रभावित करता हैं।
यह भाव भाग्य स्थान के रूप से जाना जाता है। आप कितने भाग्यशाली है, आपको जीवन में प्रगति के लिए सरलता से सब कुछ प्राप्त होगा या अनेकों कष्टों के बाद सफलता मिलेगी, आदि बातें भाग्य स्थान बताता हैं। इस भाव की विशेषता यह हैं की यह कुंडली का पंचम के अतिरिक्त तीसरा मूल त्रिकोण स्थान हैं और जातक को इस भाव में स्तिथ ग्रहों से शुभ फल प्राप्ति होती हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के गुदाद्वार और गुप्तांगों को प्रभावित करता हैं।
इसे कर्म स्थान या राज्य भाव कहते है, अर्थात यह मनुष्य के कर्मों का सूचक है। आपकी नौकरी कैसी रहेगी, किस क्षेत्र में आपके लिये व्यवसाय के अवसर होंगे, आपके लिए कौनसी नौकरी या कामकाज फलदायी होगा, आपको कौनसा कर्म क्षेत्र चुनना चाहिए, इसकी जानकारी आपको कुंडली का दसवां भाव देता है। चौथे भाव से सप्तम में होने से यह भाव पिता का कारक माना जाता हैं, इसे भाव से पैतृक संपत्ति, पितृ सुख, पितृ पक्ष के समबंधियों के विषय में जानकारी मिलती हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के घुटनों को प्रभावित करता हैं।
यह लाभ स्थान कहलाता जाता है। अर्थात, लाभ से शाब्दिक अर्थ केवल धन लाभ न होकर, आप जीवन में सभी विषयों से लाभान्वित होंगे यह भाव दर्शाता हैं। व्यक्ति की कामना, आकांक्षा, इच्छापूर्ति, बड़े भाई, दोषों से मुक्ति, आय प्राप्ति, सिद्धि, वैभव आदि इस भाव के कारकत्व हैं। किसी व्यक्ति के द्वारा किए गए प्रयासों में उसे कितना लाभ प्राप्त होगा, यह ग्यारहवें भाव से देखा जाता है। इस भाव की खास विशेषता यह हैं की इस भाव में स्तिथ ग्रह हमेशा शुभ फल ही देते हैं। शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के टखने और पिंडली को प्रभावित करता हैं।
यह व्यय भाव या खर्च का स्थान कहलाता है। यह अलगाव, समाज से पृथकता और अध्यात्म का भी सूचक हैं. आपके स्वप्न, निद्रा, खर्चे, कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, सन्यास, अनैतिक संबंध, व्यसन, जेल, आत्महत्या, मुक़दमे आदि इस भाव के कारकत्व हैं। इसे अदृश्यता हा भी स्थान कहा जाता हैं. शारीरिक संरचना में यह भाव जातक के पंजों और विशेस रूप से दायी आंख को प्रभावित करता हैं।
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