वैदिक ज्योतिष अनुसार, व्यक्ति की जन्म कुंडली के 12 भावों में ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल हो अथवा कोई त्रुटि उत्पन्न हो तो उसे दोष कहा जाएगा। ग्रहों की स्थिति की गणना जन्म तिथि, स्थान और जन्म समय को विचार में रखकर की जाती है। जन्म कुंडली बनाते समय, यदि शनि, राहु वगैरह जैसे अशुभ ग्रह विशिष्ट भावों में बैठे हैं, तो वे कुंडली को प्रभावित करते हैं और दोषों को जन्म देते हैं। ऐसा नहीं हैं की इन ग्रहों की स्थिति केवल दोषों को उत्पन्न करती है, बल्कि कुंडली में ऐसे योग भी बनते हैं जो कुंडली और व्यक्ति पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। कुंडली में देखे जाने वाले कुछ सामान्य दोष निम्न हैं; काल सर्प दोष, पितृ दोष, नाड़ी दोष, शापित दोष आदि।
कुंडली में उत्पन्न दोषों का सर्वाधिक कारक मंगल ग्रह माना जाता है। वैदिक ज्योतिष अनुसार लगभग 100 प्रतिशत दोष मंगल के कारण होते हैं, जो उच्चतम है। मंगल के अलावा सूर्य, शनि और राहु भी दोषों के प्रमुख कारक हैं, जो पाप ग्रह कहलाते है। शनि 75 प्रतिशत दोषों का कारक बनता है, सूर्य 50 प्रतिशत और राहु 25 प्रतिशत अशुभकारी घटनाओं का कारण बताया जाता हैं।
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, कुंडली के विविध भावों में ग्रहों के नकारात्मक स्थान में बैठे होने से दोष उत्पन्न होते है। उदाहरण के लिए, यदि कोई ग्रह नीच अवस्था में हो, अथवा लग्न या राशि पर किसी अशुभ ग्रह की सीधी दृष्टी पड़ रही हो, तो जातक पर अशुभ प्रभाव पड़ने की संभावना अधिक होती है। यह भी सर्वप्रचलित मान्यता है कि कुंडली में दोषों की उपस्थिति का कारण न केवल वर्तमान जन्म बल्कि पिछला जन्म भी होता है। दोष साधारणतः सकारात्मक या शुभ परिणाम प्रदान नहीं करते, वे अशुभ फल देते हैं।
कुंडली में दोष कब तक रहेंगे इसकी कोई निश्चित समय सीमा नहीं है। यह हर दोष के लिए अलग है, कुछ दोष थोड़े समय के लिए प्रभाव देते होता है, जबकि अन्य, व्यक्ति को निरंतर समय और कई वर्षों तक अशुभ फल देते रहते है। यह विशेष रूप से तब हो सकता है जब व्यक्ति इस विषय में अबोध रहता है, और संबंधित उपायों का उचित प्रबंधन नहीं करता। मांगलिक दोष (Mangalik Dosha) को इस विषय में एक प्रमुख उदाहरण की तरह देखा जा सकता है। दोषों का प्रभाव तभी निरस्त होता है जब जातक किसी ज्योतिषी द्वारा बताए गए उपचारात्मक सुझाव का अनुसरण करता है या किसी अन्य मांगलिक से विवाह करता है। इसी प्रकार, शनि (शनि) से संबंधित दोष दीर्घ समय तक बना रह सकता है। क्लिकएस्ट्रो की मुफ्त कुंडली फलादेश (मंगल) कूज, राहु, केतु अदि दोषों के लिए उपाय प्रदान करती है।
एक कहावत है कि अगर कोई समस्या है, तो उसका समाधान अवश्य होगा। यह बात कुंडली में पाए जाने वाले दोषों पर भी लागू होती हैं । दोषों को दूर करने के लिए अनेक विधान बतलाये गए है लेकिन अलग अलग दोष के लिए, उपचार विधान भी अलग है। दोष किस प्रकार के हैं इस अनुसार, इनका निराकरण के लिए एक अनुरूप उपाय का सुझाव दिया जाता है। दोष उत्पन्न करने वाले ग्रह की पूजा, उच्च आध्यात्मिक ऊर्जा स्थानों, मंदिरों में जाना, शांति पूजा करना, उपवास करना, धर्मार्थ कार्यों में संलग्न होना आदि कुछ ऐसे उपचारात्मक उपाय हैं जो प्रवृत्त दोष के प्रभाव को सौम्य या निरस्त करने के लिए जाने जाते हैं।
कुंडली के गहन ज्ञान और उसके अवकलन द्वारा ज्योतिषी निश्चित सरलता से दोषों की उपस्थिति का पता लगा सकते हैं। यह लगता है उतना आसान नहीं है, केवल पर्याप्त अनुभवी भविष्यवक्ता ही निष्कर्ष पर आने से पहले सटीक भविष्यकथन कर सकते हैं। क्लिकएस्ट्रो कुंडली फलादेश सबसे प्रसिद्ध ऑनलाइन कैलकुलेटरों में से एक है जो न केवल कुंडली में उपस्थित दोषों को दर्शाते है, अपितु उन उपायों की भी व्याख्या करता है जो किसी जातक को अशुभ प्रभावों को कम करने में मदत कर सकते हैं।
मांगलिक दोष: यदि कुंडली में मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति मांगलिक माना जाता है। इस दोष से छुटकारा पाने के लिए, व्यक्ति मंगलवार का उपवास करें, हनुमान चालीसा का पाठ करें, मंगल मंत्र का पाठ कर सकते हैं, 28 वर्ष की आयु के बाद विवाह हो यह प्रयास करें, और जहां तक संभव हो किसी अन्य मांगलिक से विवाह करे, आदि।
काल सर्प दोष: यह दोष ज्योतिष में अत्यंत अनिष्टकारी में से एक के रूप में जाना जाता है, जब जन्म कुंडली में सभी सातों ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं तब यह दोष बनता हैं। इस दोष के 12 अलग-अलग प्रकार हैं, जिससे प्रभावित व्यक्ति को कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
पितृ दोष: हमारे पूर्वजों द्वारा हुए पाप या अन्यायपूर्ण व्यवहार करने से कुंडली में यह दोष बनता है। यह दोष शनि और राहु की स्थिति के कारण होता है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को पिता और चंद्र को माता के रूप में देखा जाता है। राहु और केतु सूर्य और चंद्र के शत्रु ग्रह हैं, इसलिए यदि सूर्य या चंद्र, राहु और शनि एक ही साथ बैठे हों, तो पितृ या पितर दोष कहा जाता है। पितृ दोष से ग्रस्त जातक अपने इष्टतम प्रयासों के बावजूद जीवन में प्रगति के लिए संघर्ष करता है।
कार्तिक जन्म दोष: हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक माह अक्टूबर मध्य में शुरू होकर नवंबर मध्य तक रहता है। इस अवधि में जन्म लेने वाले जातकों की कुंडली में यह दोष अवश्य पाया जाता है। यह भी एक अनिष्ट दोष है, क्योंकि इस समय सूर्य की ऊर्जा का स्तर कम होता हैं, इससे पीड़ित व्यक्ति के सगे परिवार पर प्रभाव पड़ेगा।
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