हर व्यक्ति की यह जानने की जिज्ञासा होती हैं कि उसके भाग्य में क्या लिखा है, भाग्योदय कब होगा, जिससे वशीभूत होकर वेदांग ज्योतिष या उनके सिद्धांतो के आधार पर जन्म कुंडली के अध्ययन से जीवन के भूत, वर्तमान और भविष्य का फलादेश किया जा सकता है। जातक का रंगरूप, आचार-विचार, स्वाभाव, गुण, दोष, योग्यता, सफलता, व्यवसाय, रुचि आदि का विचार भी लग्न भाव से किया जाता है। मात्र लग्न जानने के बाद किसी व्यक्ति के स्वभाव व विशेषताओं के विषय में संक्षिप्त जानकारी दी जा सकती है। लग्न भाव जातक के स्वभाव, रुचि, विशेषताओ और चरित्र के गुणों को प्रकट करता है। कुंडली के पहले भाव में जो राशि पड़ती है उसी से लग्न का निर्धारण होता है, जैसे प्रथम भाव में मेष राशि हो तो मेष लग्न होगा, सिंह राशि हो तो सिंह लग्न होगा, आदि। कुंडली में लग्न और लग्नेश का बलवान होना जातक के जीवन में उपरोक्त पहलुओं की शुभ स्थिति प्रदान करता है, वही बलहीन लग्न और लग्नेश व्यक्ति को जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव और संघर्ष का सामना कराते हैं। लग्न में जो राशि हैं, उसी का स्वामी लग्नेश कहा जाता हैं। कुंडली मिलान में भी विवाह लग्न का विचार महत्वपूर्ण हैं। लग्न जन्म कुंडली का सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग हैं और जातक के जीवन फलादेश का आधार स्तंभ है।
कुंडली, अथवा जन्म कुंडली किसी समय विशेष पर किसी स्थान विशेष से दृश्य आकाश का मानचित्र या नक्शा है। कुंडलियों के प्रकार में सबसे प्रमुख जन्म-लग्न कुंडली होती है जिसे लग्न कुंडली भी कहते हैं। लग्न जन्मकुंडली की आत्मा है। खगोलीय सौरमंडल की बारह राशियां क्रमशः एक के बाद एक पूर्वदिशा में उदय होती है। यह क्रम 24 घंटे या 60 घटी मे पूर्ण होकर पुनः शुरू हो जाता है और यही क्रम अनवरत चलता रहता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की परिक्रमा करती है और इसी परिक्रमा के कारण सम्पूर्ण आकाश पूर्वी क्षितिज पर उदय होता जान पड़ता है। उपरांत, आकाश को बारह भागों मे विभाजित कर उन भावों को विभिन्न नाम दिये गए हैं जैसे प्रथम भाव जन्म लग्न या तनु भाव कहलाता है। यह भाव आकाश की पूर्व दिशा को निर्देशित करता है। किसी समय विशेष मे पूर्वदिशा मे जो राशि उदित हो रही हो उसी को प्रदत्त अंक विशेष इस प्रथम भाव में लिखा जाता है। जैसे, यदि प्रथम पूर्वी भाव में अंक '1' लिखा हो तो इसे मेष, '2' लिखा हो तो वृषभ, '3' हो तो मिथुन, इसी प्रकार अन्य राशियों का हर दो घंटे में पूर्व में उदय होता है और इच्छित समय पर जो राशि उदित हो रही हो उसी को उस समय की लग्न राशि मान कर अन्य राशियों को क्रमवार कुंडली में स्थापित कर दीया जाता है और यह जन्म लग्न कुंडली कहलाती है।
लग्न कुंडली बनाने हेतु जन्म तारीख, जन्म समय, जन्म स्थान के अक्षांश देशांश, स्थानिक सूर्योदय, लग्न सारणी की आवश्यकता होती है। लग्न कुंडली बनाते समय लग्न और अन्य सभी भाव स्थिर रहते हैं, और राशियां हर 2 घंटे में स्थान परिवर्तन करती हैं, या चल होती हैं। उदाहर्नार्थ, यदि सूर्योदय के समय पूर्व दिशा में मेष राशि का उदय हो रहा हो, तो यह मेष लग्न की कुंडली होगी। यहां सूर्योदय होने से सूर्य पूर्व में होगा और लग्न भाव में स्तिथ होगा। जैसे हमने पहले देखा, पूरे 24 घण्टों मे 12 लग्नों का उदय होने से दिनभर में 12 लग्न कुंडलियां बनती हैं। अर्थात, दिन या रात्रि में किसी भी इच्छित समय पर पूर्व में जिस राशि का उदय हो रहा हो उस समय लग्न में उसी राशि का प्रतिनिधि अंक तनु भाव में लिख कर अन्य राशियों और स्पष्ट ग्रह तालिका में निर्देशित ग्रहों को स्थापित कर के लग्न कुंडली प्राप्त की जाती है। शुभाशुभ फलकथन के लिए लग्न पर ग्रह की स्तिथि और दृष्टी का अति महत्व हैं। लग्न शुभ ग्रह से दृष्ट हो या शुभ योग हो, तो जातक स्वास्थ्य, धन-संपत्ति, सुख पाता है। फलकथन लग्न और राशि दोनों द्वारा किया जाता हैं, लग्न से फलादेश जातक की क्षमता व योग्यता को पहचान कर जातक का समुचित विकास करना है।